
देश बदल रहा है , देश की राजनीति भी बदल रही है , कभी नेताओं की पहचान खादी से हुआ करती थी लेकिन अब स्वरुप बदलता जा रहा है , कभी नेता जनता की आवाज़ हुआ करता था अब भीड़ में एक चर्चित चहरा बन कर रह गया है , अब का नेता आदर्शों की बातें नहीं करता , वो दूसरो पर कीचड़ उछालता है !
जब से देश की राजनीति सत्ता मात्र की पहचान बनी है तब से राजनीति के मायने ही बदल गए है , अब सत्ता के लिए राजनितिक पार्टियों को किसी भी चीज़ से परहेज़ नहीं है ,पार्टियाँ कभी बाहुबल का सहारा लिया करती थी , अब बाहुबलियों के सहारे सरकार चलाती है , जो कभी अपराधी हुआ करते थे अब उन्हें सम्मानित कहा जाता है , सत्ता की लगाम उनके हाथों में है जो ख़ुद बे लगाम है , क्या देश का भविष्य इन बाहुबलियों के हाथ में है ?
ये तो उनकी बात हुई जो कभी हत्या , लुट , फिरौती , अपरहण , जैसे कारनामें करके राजनीति में आयें है अब ज़रा उनकी भी बात कर ली जाए जो एक रंगीन सपनो की दुनिया से हकीकत की ज़मीन उतरें है लेकिन मंजिल का उन्हें भी कोई अंदाजा नहीं है , ये हैं बॉलीवुड के वो सितारे जो सिनेमा के रंगीन पर्दे पर जनता को हसीन सपने दिखाते है , ये वो हसीन चहरा है जो पर्दे पर हर रोज़ बिकता है , अपनी अदाओं से दिल जीत लेते है , अपने हुस्न से दीवाना बना देते है , ये इनका पेशा है अपने पेशे में ये बखूबी से उतर जाते है , लेकिन क्या ये जनता के दर्द को समझ सकेंगे ? उनकी परेशानियों का एहसास है इनको ? कब तक ये जनता की आखों यूही धुल झोकते रहेंगे ???
पार्टियाँ चाहे जो भी हो , बॉलीवुड के सितारों की जमात हर जगह है , ये अपने फ़र्ज़ के साथ कितना इन्साफ करते है ये सभी जानते है ? चाहे बात धर्मेन्द्र की हो या गोविंदा की , या अन्य किसी अभिनेता से बने नेता की ...सभी की एक ही परेशानी है ...वक्त नहीं है ?
जनता ने इन्हे अपना प्रतिनिधि तो बना दिया लेकिन भूल गए की रंगीन सपने सिर्फ़ पर्दों पर ही अच्छे लगते है , इन जनप्रतिनिधियों को शायद ये भी ना पता हो के संसद निधि कहाँ पर खर्च की जाती है या की जाती भी है या नहीं ? जनता ने जब इनको संसद तक पंहुचा ही दिया है तो फ़िर वापस अपने छेत्र में क्यूँ देखना चाहती है ???
दक्षिण में फिल्मी कलाकारों को भगवान् की तरह पूजा जाता है जहाँ की राजनीति रंगीन पर्दे से हो कर गुज़रती है , जहाँ जो कलाकार की ज़ियादा फिल्में हिट है वो उतना बड़ा नेता बन जाता है , अब तो ये भी ख़बर मिल रही है की फिल्मों की दुनिया से निकल कर अपने राज्य जी जनता का दुःख दर्द बाटने के लिए चिरंजीवी भी एक पार्टी बनने जा रहे है , ये तो वक्त ही बताएगा की उनकी कितनी फिल्में हिट है ???
देश की राजनीति की इस नई तस्वीर में वो चहरे भी शामिल है जो यूवा है कुछ कर गुजरने की चाहत भी रखते है लेकिन संसद के शोर में उसकी आवाज़ कहीं दब कर रह जाती है ,
उनको सुनने ही ज़हमत कोई नहीं उठाना चाहता है , उनके विचार तो है लेकिन पार्टी की गाइड लाइन से भटकने का अंजाम भी वो जानते है ???
इन सब के बीच सभी पार्टियाँ अपनी अपनी गिनती बढाने में लगी हुई है , उन्हें इससे मतलब नहीं है के जीतने वाला कौन है बस गिनती बढ़ना चाहिए , क्या पता कब विस्वास मत के लिए उनकी ज़रूरत पड़ जाए ? जनता तो बेचारी मासूम है किसी के भी बहकावे में आ जाती है , चिकना चहरा , एक दो फिल्मी डायलाग , और क्या वोट तुम्हारा ???
आज ये सोचने की ज़रूरत है की आधी बोतल शराब से या फ़िर के कुल्हे मटकाते किसी कलाकार के हाथों में क्या हम देश की बाग़ दौड़ सौपने जा रहे है ? क्या इस देश की कमान उनके हाथों में होंगी जिनके ख़ुद के हाथ खून से रंगे हुए है ? क्या यही लोकतंत्र है ? अगर हाँ ... तो तमाशा देखते देखते हम ख़ुद एक दिन तमाशा बन जायेंगे और लोकतंत्र की हत्या और बलात्कार होते देखने में ज़ियादा वक्त नहीं लगेगा ???