बड़े ही अफ़सोस की बात है लेकिन ये सच है की इक्कीसवीं सदी में भी हमारे समाज का रूढीवादी चहरा अब भी नहीं बदला है , आज भी लोग अपने द्वारा बनाये गए समाज के तुगलकी फरमानों का शिकार हो रहे है , बात आज की नहीं बीस साल पुरानी है दुर्गा प्रसाद को ये नहीं मालुम था के ये फैसला मरने के बाद भी उसका पीछा नहीं छोडेगा , और उसने एक दलित से प्रेम विवाह कर लिया !
समाज से उसे बेदखल कर दिया गया पूरा का पूरा गावँ उसके विरोध में खड़ा हो गया उसके अपने पराये हो गए , उसके साथ ना कोई बात करता और ना ही कोई उनके घर जाता , ये सज़ा उन्हें दूसरी जाति में शादी करने की मिली , उस वक्त से दुर्गा प्रसाद घीनोने समाज का बदनुमा चहरा रोज़ ही देखता रहा कभी दूकान में कभी सड़क पर या कभी चौपाल पर !
शायद दुर्गा को ले लगा होगा के समाज का मुखौटा लगाए मेरे अपने मुझे एक दिन फिर से स्वीकार कर लेंगे ? लेकिन ऐसा हुआ नहीं, और एक दिन दुर्गा की आत्मा ने भी उसके शारीर का साथ छोड़ दिया , घर में मातम छाया हुआ था दुर्गा प्रसाद की पत्नी परेशान थी क्यूंकि दुर्गा की अर्थी को कन्धा देने के लिए गावं का एक आदमी भी तैयार नहीं था , दुर्गा ने अछूत लड़की के विवाह जो किया था , दुर्गा की लाश यूही घंटो पड़ी रही लेकिन उसे हाथ लगाने वाला कोई नहीं था ,
पूरा का पूरा गावँ तमाशा देखता रहा लेकिन मदद के लिए कोई भी आगे नहीं आया , मरने के बाद भी दुर्गा प्रसाद समाज से बहिष्कृत था फिर किसी तरह दूसरी समाज सेवी संस्था ने उनका अंतिम संस्कार किया !!!
2 टिप्पणियाँ:
http://in.youtube.com/watch?v=5KRb2f9WUAk
यह छूआ छूत समाज के लिए कैंसर की तरह हैं।लेकिन अब शहरों में परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं।
जरुर पढें दिशाएं पर क्लिक करें ।
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