वो शाम का वक्त था , मैं से ज़माने की भागदौड़ से कही दूर तनहइयो में बैठा, अपनी ज़िन्दगी का हिसाब किताब कर रहा था, सोच रहा था के मैंने इस दुनिया में क्या खोया और क्या पाया ???डूबते हुए सूरज की लों मेरी आखों से टकरा रही थी, और मेरे आंसू मेरी आखों का साथ छोड़ रहे थे, मन में हजारों सवाल दौड़ रहे थे, मेरे साथ ही ऍसा क्यूँ हुआ ? हमेशा मेरे साथ ही ऍसा क्यूँ होता है ? भगवन तुम ने मेरे साथ ऍसा क्यूँ किया ? फिर अचनक मेरे मन में एक सवाल आया ? क्यूँ ना में आत्महत्या कर लू ???मेरे पल भर के इस फैसले ने मुझे कुछ सोचने को मजबूर कर दिया ? अगर में मर गया तो क्या होगा??? मेरे घर में मेरे अंतिम संस्कार की तयारी चल रही है , मेरे बुजुर्ग पिता का चहरा मायूस है उनकी आँखे पत्थर हो गयी है , जिस उम्र में उन्हें मेरे साथ की ज़रूरत है मैने छोड़ दिया है , वो किसी तरहा बस खुद को संभाले हुए है ? बस उन्हें अब इसी ग़म से जीना है,दूसरी तरफ वो जिसने मुझे नाज़ो से पाला,मेरी हर छोटी बड़ी जिद को पूरी करती रही , मेरी हर गलतियों को माफ़ करती रही , बस मुझे खुश देखने के लिए पता नहीं उसने क्या क्या किया , मेरी माँ ...उसके आसूं तो जेसे थमने का नाम ही नहीं ले रहे है , रो-रो के उसने अपना बुरा हाल कर लिया है , उसे अब भी यकीं नहीं है के मै अब इस दुनिया में नहीं हूँ ?? उसे अब भी ऐसा लगता है के मै अभी उठ जाऊंगा और कहूँगा ...माँ... ??? मेरी नादान माँ ??? कितने सपने देखे थे मेरे लिए ? मैंने सब तोड़ दिए.. उनके सरे अरमानो का गला घोट दिया ... ना जाने अब वो इस हादसे को कब भूलेंगी ??? शायद सारी ज़िन्दगी नहीं !कुछ भीड़ सी दिखी , भीड़ के बीच में मेरा मायूस भाई नम आखे लिए मेरे कुछ अज़ीज़ दोस्तों को कुछ बता रहा था ? सब बहुत उदास थे , दुखी थे , सबको मुझे खोने का ग़म था ? बहुत से लोग मुझसे बहुत सी बाते कहना कहते थे ? लेकिन अफ़सोस मैं तो इस दुनिया में नहीं था , मैं दूर खड़ा सब देख रहा था , अपने किये पर शर्मिंदा था , अपने किये की माफ़ी चाहता था , मुझे अपने माता पिता की पीड़ा देखी नहीं जा रही थी , दोस्तों को खोने का ग़म सता रहा था , लेकिन मुझे माफ़ी नहीं मिल रही थी, क्यूँ की मैं इस दुनिया में था ही नहीं !!!इतना सोच मेरा बदन कापने लगा , मैने अपना सर उपर किया तो देखा सूरज डूब चूका था , टिमटिमाते तारे और धुन्दला सा चाँद दिखा, मैंने अपनी नम आखों को पोछा, मुझे अपने उस सवाल पर पछतावा हुआ , और फिर मेरे मन में एक सवाल आया ? मेरी एक ज़िन्दगी कितनी जिंदगियों से जुडी है ? मेरी ज़िन्दगी मेरे लिए ही नहीं दुसरो ले लिए भी है मेरे अपनों के लिए भी है और उनका ये हक मैं उनसे भला कैसे छीन सकता हूँ !!!{{{ यह लेख एक काल्पनिक सत्य है , इस तरह के विचार अगर आप के मन में हो तो कृपा कर इसे निकाल दे , हम आप के आभारी होंगे , }}}
Wednesday, July 9, 2008
क्यूँ ना मैं आत्महत्या कर लूँ ???
वो शाम का वक्त था , मैं से ज़माने की भागदौड़ से कही दूर तनहइयो में बैठा, अपनी ज़िन्दगी का हिसाब किताब कर रहा था, सोच रहा था के मैंने इस दुनिया में क्या खोया और क्या पाया ???डूबते हुए सूरज की लों मेरी आखों से टकरा रही थी, और मेरे आंसू मेरी आखों का साथ छोड़ रहे थे, मन में हजारों सवाल दौड़ रहे थे, मेरे साथ ही ऍसा क्यूँ हुआ ? हमेशा मेरे साथ ही ऍसा क्यूँ होता है ? भगवन तुम ने मेरे साथ ऍसा क्यूँ किया ? फिर अचनक मेरे मन में एक सवाल आया ? क्यूँ ना में आत्महत्या कर लू ???मेरे पल भर के इस फैसले ने मुझे कुछ सोचने को मजबूर कर दिया ? अगर में मर गया तो क्या होगा??? मेरे घर में मेरे अंतिम संस्कार की तयारी चल रही है , मेरे बुजुर्ग पिता का चहरा मायूस है उनकी आँखे पत्थर हो गयी है , जिस उम्र में उन्हें मेरे साथ की ज़रूरत है मैने छोड़ दिया है , वो किसी तरहा बस खुद को संभाले हुए है ? बस उन्हें अब इसी ग़म से जीना है,दूसरी तरफ वो जिसने मुझे नाज़ो से पाला,मेरी हर छोटी बड़ी जिद को पूरी करती रही , मेरी हर गलतियों को माफ़ करती रही , बस मुझे खुश देखने के लिए पता नहीं उसने क्या क्या किया , मेरी माँ ...उसके आसूं तो जेसे थमने का नाम ही नहीं ले रहे है , रो-रो के उसने अपना बुरा हाल कर लिया है , उसे अब भी यकीं नहीं है के मै अब इस दुनिया में नहीं हूँ ?? उसे अब भी ऐसा लगता है के मै अभी उठ जाऊंगा और कहूँगा ...माँ... ??? मेरी नादान माँ ??? कितने सपने देखे थे मेरे लिए ? मैंने सब तोड़ दिए.. उनके सरे अरमानो का गला घोट दिया ... ना जाने अब वो इस हादसे को कब भूलेंगी ??? शायद सारी ज़िन्दगी नहीं !कुछ भीड़ सी दिखी , भीड़ के बीच में मेरा मायूस भाई नम आखे लिए मेरे कुछ अज़ीज़ दोस्तों को कुछ बता रहा था ? सब बहुत उदास थे , दुखी थे , सबको मुझे खोने का ग़म था ? बहुत से लोग मुझसे बहुत सी बाते कहना कहते थे ? लेकिन अफ़सोस मैं तो इस दुनिया में नहीं था , मैं दूर खड़ा सब देख रहा था , अपने किये पर शर्मिंदा था , अपने किये की माफ़ी चाहता था , मुझे अपने माता पिता की पीड़ा देखी नहीं जा रही थी , दोस्तों को खोने का ग़म सता रहा था , लेकिन मुझे माफ़ी नहीं मिल रही थी, क्यूँ की मैं इस दुनिया में था ही नहीं !!!इतना सोच मेरा बदन कापने लगा , मैने अपना सर उपर किया तो देखा सूरज डूब चूका था , टिमटिमाते तारे और धुन्दला सा चाँद दिखा, मैंने अपनी नम आखों को पोछा, मुझे अपने उस सवाल पर पछतावा हुआ , और फिर मेरे मन में एक सवाल आया ? मेरी एक ज़िन्दगी कितनी जिंदगियों से जुडी है ? मेरी ज़िन्दगी मेरे लिए ही नहीं दुसरो ले लिए भी है मेरे अपनों के लिए भी है और उनका ये हक मैं उनसे भला कैसे छीन सकता हूँ !!!{{{ यह लेख एक काल्पनिक सत्य है , इस तरह के विचार अगर आप के मन में हो तो कृपा कर इसे निकाल दे , हम आप के आभारी होंगे , }}}
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2 टिप्पणियाँ:
lekh bhut achha likha hai. jari rhe.
अच्छा लिखा है। आत्महत्या का विचार किसी तरह से मनुष्य की सोच से डिलीट हो सके तो, मजा आ जाए।
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