Friday, May 30, 2008


मुझे भी अपनी ज़िंदगी जीने दो ,
मैंने भी आखों में कई खाब सजाए हैं !!!
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भारत के नक्शे मे अगर आप ने कहीं छत्तीसगढ़ को देखा है या इसे जानने की कोशिश की है तो बस्तर का ज़िक्र ज़रुर आया होगा ? बस्तर में रहने वाले आदिवासियो को जानने की उनके जिवनशैली को नज़दीक से समझने की जिज्ञासा हम शहरी लोगों को कुछ ज़यादा ही रहती है , यहाँ तक के विदेशो तक से लोग इनपर अध्यन करने के लिए चले आते है लेकिन इनके दर्द को आज तक शायद ही किसी ने समझा है या महसूस किया है ?
नक्सलवाद की मार झेल रहा बस्तर इन दिनों एक ऐसे विनाश की ओर बढ़ रहा है जिसका अंदाजा न वहाँ रहने वाले लोगों को है और का सरकार को ? नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए चलाये जा रहे सलवा जुडूम का अंजाम इतना भयंकर हो सकता है के कहीं ऐसा न हो के बस्तर से आदिवासियों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए ?
नक्सलवाद से निपटने के लिए सलवा जुडूम का जन्म हुआ , सलवा जुडूम में वो आदिवासी शामिल हुए जो नक्सल पीड़ित थे , गांव के गांव खली हो गए और कम्पे में रहने लगे , लेकिन अब भी बहुत से आदिवासी अपनी ज़मीन अपना घर अपनी मिटटी को छोड़ कर नही रहना चाहते है वो अपनी ही ज़मीन में जीना मरना चाहते हैं ,लेकिन ऐसे आदिवासीयों को अब अपनी मर्जी से अपनी ज़िंदगी जीने अक हक नही है , उनकी आज़ादी में न जाने क्यों ग्रहण लग गया है , गावं में रहते है तो सलवा जुडूम के लोग उन्हें नक्सलियों का समर्थक कहते है ,गावं में रहते है तो नक्सली उन्हें जीने नही देते , गावं में रहते है तो उन्हें कोई भी सरकारी सुविधाएँ नही मिलती है, इतना अत्याचार आदिवासियों के साथ क्यों किया जा रहा है आख़िर उसका कसूर क्या है ? वो भोले भले मासूम अपनी ज़िंदगी अपनी तरह से जीना कहते है लेकिन उन्हें वो भी नही दिया जा रहा है आख़िर उनका दर्द कौन समझेगा ? उनकी आखों में जीने की उम्मीद है , उन्होंने भी कई खाब सजाए होंगे , उन्हें किसी के सहारे की ज़रूरत भी नही है ना ही उन्हें दुनिया की फ़िक्र है , वो जिस हाल में है खश हैं , उनका कोई कसूर नही है ना वो नक्सली है ना वो सलवा जुडूम से जुड़े हुए है और ना सरकार हैं ,
शुक्र है इस हाल में भी उसे जीने की आस है !!!!!!!!!!!!!!

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