बड़ी खामोश सी है ये शाम,
और तन्हाई का आलम है ,
दखने से लगता है के सब चुप है ,
लेकिन दिल में लाखो सवाल है , कई आरज़ू सीने में दबा राखी है ,
कोई चेहरा नहीं है बयां करने के लिए,
यूँ तो हर वक्त है काफिला सा ,
फिर इतना तनहा में हर वक्त क्यूँ हूँ ,
बे रंग नहीं थी कभी ज़िन्दगी ,
मेरे खाबो ने मेरा रंग चुराया है ,
हारा नहीं हूँ मैं , ज़िन्दगी तुझसे ,
कुछ हालत ही ऐसे है ,
मैं खुद से खफा हूँ !!!
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5 टिप्पणियाँ:
kamaal hai kuch der same kuch easa hi main bhi soch rahi thi :) par usko pura nahi kiya thaa abhi bahut accha laga yahn pura dekhkar bahut khub
;
achcha likha hai anwar ji
mera blog bhi dekhe
बेहद खूबसूरत...बहुत उम्दा...वाह!
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