Monday, December 22, 2008
आख़िर क्या है ये ज़िन्दगी ?
ज़िन्दगी की शुरुवात ही न जाने कितनी ख्वाइशों से शुरू होती है , कुछ महलों में सजती है तो कुछ मुफलिसी में , लेकिन ज़िन्दगी जहाँ भी हो कई उम्मीद लेकर आती है , किसी की किस्मत में सारा आसमा है तो किसी की किस्मत में रत्ती भर की ज़मीं भी नहीं ? ज़िन्दगी फ़िर भी हर हाल में मुस्कुराती है ...
तमाम मुश्किलें ... तमाम रास्ते है ... कहीं रास्ते आसां है ॥ कहीं मुश्किलें ज़ियादा भी है लेकिन ये ज़िन्दगी है ...जो बस चलती रहती है कहीं खुशियों का समंदर खारा सा लगता है तो कहीं एक बूंद सी खुशी समंदर सी लगती है , छोटी छोटी सी खुशियों से कहीं आशियाना सा बनता दीखता है और कहीं बड़े बड़े आशियाने में छोटी सी खुशियाँ भी नहीं दिखती ...आख़िर क्या है ये ज़िन्दगी ???
कभी कहीं सड़क के किनारे किसी शख्स को देखा है ठिठुरती ठंड में एक छोटी सी चादर लिए जिससे उसके पैर बाहर की तरफ निकले हुए चैन की नींद सो रहा है ...खाब उसके भी होंगे एक नई सुबह की ॥ जो उसकी तकलीफों को कुछ कम कर सके ... हसरतें अभी मरी नहीं है ...कहीं किसी कोने में छुपा कर के रखी है ...शायद तलाश है उसे अपने किसी की ... जिससे वो बयां करे ...
एक रात ये भी है ..रौशनी से नहाई हुई है ... सेकडों की भीड़ ... लेकिन कुछ तनहा से लग रहे है... खुशामिजाज़ी का मंज़र भी है ...शानोशौकत में कुछ कमी नहीं है ...शायद खुशियों की कुछ कमी तो नहीं सी लगती है ...सब कुछ पा लिया लगता है ... फ़िर भी ज़िन्दगी से बहुत तमन्नाएँ अभी बाकी है ...और एक रात की सुबह का मंज़र कुछ ऐसा होगा कभी सोचा ना था ...ज़िन्दगी तलाश रही है बिखरे हुए कचरे के ढेर में ज़िन्दगी ...आख़िर क्या है ये ज़िन्दगी ???
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4 टिप्पणियाँ:
जीने का फकत एक बहाना तलाश करती ये जिन्दगी,
अनचाही किसकी बातें बेशुमार करती ये जिन्दगी...
कोई नही फ़िर किसे कल्पना मे आकर देकर,
यहाँ वहां आहटों मे साकार करती ये जिन्दगी...
इक लम्हा सिर्फ़ प्यार का जीने की बेताबी बढा,
खामोशी से एक स्पर्श का इंतजार करती ये जिन्दगी..
ना एहतियात, ना हया, ना फ़िक्र किसी जमाने की,
बेबाक हो अपना दर्द-ऐ-इजहार करती ये जिन्दगी...
रिश्तों के उलझे सिरों का कोई छोर नही लेकिन,
हर बेडीयों को तोड़ने का करार करती ये जिन्दगी...
बंजर से नयन, निर्जन ये तन, अवसादित मन,
उफ़! इस बेहाली से हर लम्हा तकरार करती ये जिन्दगी
Regards
हर दिन अपने साथ कई ख्वाहिशे लेकर आता है....जुदा जुदा शक्लो में.....छोटी बड़ी कई खवाहिशे अपनी हथेली में लिये.....कुछ उडेल देता है......कुछ नही......
बहुत अच्छा िलखा है आपने । मैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है- आत्मविश्वास के सहारे जीतें जिंदगी की जंग-समय हो पढें और कमेंट भी दें-
http://www.ashokvichar.blogspot.com
भाई जान आब काबिल तो हैं इस पर तो शुरू से ही यकीन था लेकिन इस लेख से आपने अपने बालिग होने का अहसास करा दिया....सच मे आप पर बहुत प्यार आ रहा है लेकिन क्या करूँ....जाहिर कर नहीं सकता,ये दुनिया बड़ी बेदर्द है....ना जाने क्या समझ ले.........
आपका नटखट छोटा भाई.....
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