दुःख बिना सुख ना भावे ,
दर्द बिना आराम न आवे !
जो मिल जाये बिन महनत उसका
मोल नहीं कुछ होवत है ,
जोड़ जोड़ के तिनका तिनका
ऐसा मन को भावत है !!
सागर सागर किस काम का जो
प्यास भी ना भुझा पावत है ,
बूंद बूंद मिल जाये तो
मन भर प्यास भुझावत है !!
धरती की विशाल है काया
फिर भी आकाश संमावत है ,
छोटे छोटे पर है
मेरे इसमें आकाश समाये रे !!
संबंधों की डोर है कच्ची
प्रेम प्रेम से जिले तू ,
एक बार जो जाये फिर तो
वापस नहीं वो आवत है !!
और जीवन काल बहुत है
छोटा जिले जीवन सरल सरल ,
जीते जी कोई पूछे न है !
मर के याद ना आये गा ,
बात मान ले मेरी
वरना जीवन भर पछतायेगा जीवन भर पछतायेगा !!!
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4 टिप्पणियाँ:
अनवर मिया अभी से बुढापे की बाते?अभी तो ज़िंदगी की शुरूआत हुई है। क्या कोई धोका दे गई।वैसे लिखा बहुत अच्छा है ,अच्छा लगता है तुम्हारा ये रूप देखकर।खूब लिखो,खूब तरक्की करो।
बहुत अच्छी रचना है।
" really liked it, good creation.."
Regards
bahut khoob....kam umr me bada tajurba kar baithe ho bhai !
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