Sunday, July 27, 2008

सूखे पत्तों सी है ज़िन्दगी !!!

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पतझड़ में जब मैंने अपने ,

पच्चीस साल पुरे किये ,

तब टहनियों से टूट के ज़मी पर आया ,

आते ही सामना हवाओं से हुआ

खूब थपेड़े खाए , जिधर उसने चाह बस चल दिए

फ़िर धीरे से बारिश की बुँदे पड़ी

उसने थोड़ा सा सुकून पहुँचाया ,

भिगो करके उसने दी मुझको रहत

सोंधी सोंधी मिट्टी से मुझको मिलाया ,

मैं महकता रहा नई ताज़गी से

सभी को मैं बड़ा रास आया ,
फ़िर सूरज की किरणे जब मुझपर पड़ी

ख़ुद को नहीं मैं उस से बचा पाया ,

उम्र जो मेरी कम को रही थी

सूरज की जलन मैं नहीं सह पाया , जाने का वक्त अब आ ही रहा था

मैं धीरे से खामोशी के साथ हो गया ,

मिल गया मैं जाके फ़िर उसी कुदरत में

जिसने कभी मुझे पैदा किया था ,

मैं ज़मी के अन्दर से दुआ करता रहा

सारा जहाँ फ़िर से रौशन हो गया ,

Saturday, July 26, 2008

सच में बड़ा सुकून पहुचाती हो तुम ...

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जब जब तन्हाइयों में तेरा साथ होता है ,
सच में बड़ा सुकून पहुचाती हो तुम !
कांपते हाथों को तेरा सहारा मिल जाता है ,
लग के होटों से सारी दूरियां मिटाती हो तुम ,
सच में बड़ा सुकून पहुचाती हो तुम !!
वो कांच के टुकड़ों की चुभन ,
और प्यार से गर्दन को सहलाना ,
धीरे धीरे मेरी सासों में समां जाना ,
ले लेना मुझे अपने आगोश में ,
अपने होने का मुझे अहसास कराना ,
हर वक्त याद आती हो तुम ,
सच में बड़ा सुकून पहुचाती हो तुम !!
कभी बन के धुवां आसमान में छाजाती हो तुम ,
ना जाने कितने हासीन चहरे बनाती हो तुम ,
मुझे ले करके किसी हसी दुनिया में ,
हर खुशियों का एहसास कराती हो तुम ,
आखरी दम तक देती हो साथ मेरा ,
मेरी खुशियों के वास्ते जल जाती हो तुम ,
सच में बड़ा सुकून पहुचाती हो तुम !!
{ वैधानिक चेतावनी - सिगरेट पीना स्वास्थ के लिए हानि कारक है }

अब के गिरो तो ज़रा संभल के गिरियेगा !

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चलते चलते अगर आप के कभी पाँव फिसल जाये इससे पहले कोई देखे आप खुद ही संभल जाएँ या अगर ना संभल सके तो समाज के उस चहरे का मज़ाक बनने के लिए तैयार रहे जो आप को कही दूर टक टकी लगाये देख रहे है , जिसे इस बात में मज़ा आ रहा है की वह इंसान सड़क पर फिसल के गिरा हुआ है , बड़ी अजीब सी विडम्बना है लेकिन इस मानसिकता के लोग सड़क पर गिरे इंसान को क्या इतना गिरा हुआ इंसान समझते है की समूह में उसपर हँसा जाता है ?
बड़े ही शर्म की बात है...लेकिन क्या सच में हमे इस तरह के संस्कार मिले है की किसी के गिरने पर हँसा जाये ? तरस आता है मुझे इस तरह के लोगों पर , हसने के और भी बहाने हो सकते है लेकिन किसी की बेबसी पर हँसना कितना जायज़ है ?
बहुत कम ही ऐसे लोग है जो किसी गिरते हुए को सहारा दे , बहुत की कम ऐसे है जो किसी की ज़रूरत के वक्त काम आयें , चलिए किसी गिरते हुए को सहारा ना दे , किसी की ज़रूरत के वक्त काम भी ना आयें लेकिन कुछ तो इंसान होने का परिचय दें , कभी तो उस सड़क पर पड़े पत्थर को ठोकर मारीये जो किसी दुसरे की ठोकर में आयें , किसी को रास्ता ना दिखाएँ लेकिन उसके रास्ते का अड़ंगा ना बने , कैसे इस तरह के लोगों की सोच को बदली जाये के किसी पर हसने से ज़ादा अच्छा ये है के अपना हाथ बढाके उसका सहारा बना जाये , मुझे नहीं मालुम आप ही बताइए ? ना बताना चाहिए तो ज़रा संभल के चलियेगा सड़क पे कई चहरे आप पर टक टाकी लगाये बैठे है ?

Friday, July 25, 2008

समाज की राह देखती रही उसकी लाश !!!

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बड़े ही अफ़सोस की बात है लेकिन ये सच है की इक्कीसवीं सदी में भी हमारे समाज का रूढीवादी चहरा अब भी नहीं बदला है , आज भी लोग अपने द्वारा बनाये गए समाज के तुगलकी फरमानों का शिकार हो रहे है , बात आज की नहीं बीस साल पुरानी है दुर्गा प्रसाद को ये नहीं मालुम था के ये फैसला मरने के बाद भी उसका पीछा नहीं छोडेगा , और उसने एक दलित से प्रेम विवाह कर लिया !
समाज से उसे बेदखल कर दिया गया पूरा का पूरा गावँ उसके विरोध में खड़ा हो गया उसके अपने पराये हो गए , उसके साथ ना कोई बात करता और ना ही कोई उनके घर जाता , ये सज़ा उन्हें दूसरी जाति में शादी करने की मिली , उस वक्त से दुर्गा प्रसाद घीनोने समाज का बदनुमा चहरा रोज़ ही देखता रहा कभी दूकान में कभी सड़क पर या कभी चौपाल पर !
शायद दुर्गा को ले लगा होगा के समाज का मुखौटा लगाए मेरे अपने मुझे एक दिन फिर से स्वीकार कर लेंगे ? लेकिन ऐसा हुआ नहीं, और एक दिन दुर्गा की आत्मा ने भी उसके शारीर का साथ छोड़ दिया , घर में मातम छाया हुआ था दुर्गा प्रसाद की पत्नी परेशान थी क्यूंकि दुर्गा की अर्थी को कन्धा देने के लिए गावं का एक आदमी भी तैयार नहीं था , दुर्गा ने अछूत लड़की के विवाह जो किया था , दुर्गा की लाश यूही घंटो पड़ी रही लेकिन उसे हाथ लगाने वाला कोई नहीं था ,
पूरा का पूरा गावँ तमाशा देखता रहा लेकिन मदद के लिए कोई भी आगे नहीं आया , मरने के बाद भी दुर्गा प्रसाद समाज से बहिष्कृत था फिर किसी तरह दूसरी समाज सेवी संस्था ने उनका अंतिम संस्कार किया !!!

Wednesday, July 23, 2008

बड़ी ख़ामोश सी है ये शाम !!!

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बड़ी खामोश सी है ये शाम,
और तन्हाई का आलम है ,
दखने से लगता है के सब चुप है ,
लेकिन दिल में लाखो सवाल है , कई आरज़ू सीने में दबा राखी है ,
कोई चेहरा नहीं है बयां करने के लिए,
यूँ तो हर वक्त है काफिला सा ,
फिर इतना तनहा में हर वक्त क्यूँ हूँ ,
बे रंग नहीं थी कभी ज़िन्दगी ,
मेरे खाबो ने मेरा रंग चुराया है ,
हारा नहीं हूँ मैं , ज़िन्दगी तुझसे ,
कुछ हालत ही ऐसे है ,
मैं खुद से खफा हूँ !!!

Tuesday, July 22, 2008

उनकी हथेली में लिपटा वो पचास का नोट !!!

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मैं उस दिन खुश था , सोचा चलो आज बाज़ार की सैर की जाए , शाम होते ही मैंने साफ़ सुतरे कपड़े पहने , अपना पसंदीदा डीओ लगाया और निकल गया बाज़ार की तरफ़ ...फ़िर मुझे याद आया मेरा पुराना अज़ीज़ दोस्त जिसकी इलेक्ट्रिकल्स की शॉप है बाज़ार में , बस सोच ही लिया आज की शाम उसके साथ ही बिताना है , पहुचते ही उसने मुझे देखा ..खुश हुआ मैं भी खुश हुआ और हसी ठिठोली करते हुए हम दोनों उस माहोल में ढल गए , उसके ग्राहक आते रहे वो उन्हें निपटता रहा , फ़िर कुछ देर बाद मैंने ४ से ५ लोगों को उसकी दूकान में आते हुए देखा , वो थोड़े डरे सहमे से लग रहे थे शायद किसी पास के गावं से आए थे , उनके कपड़े कुछ गंदे से थे चप्पल थोड़ी पुरानी हो चली थी मोचियों की नक्काशी भी दिख रही थी , लगभग ४० की उस महिला से मेरे मित्र से कहा ....टार्च है क्या ? मित्र ने कहा है ... और टार्च लाने चला गया ...इस बीच वो महिला अपने साथ आए २-३ लोगों से बात करने लगी ... मित्र आया और टार्च दिखाने लगा ...ये १०० का है ..ये ८० और ये ६० का है ...महिला ने कहा इतना महंगा ?? और नहीं तो क्या सस्ता तो लगा रहा हूँ ...लेकिन ये जवाब शायद उस गरीब के लिए ही था ? क्यूँ की इससे पहले वो कुछ साफ़ सुतरे लोगों से अच्छे से बात कर रहा था ? सहमी सी महिला अपने साथ आये लोगों की तरफ देखने लगी .. फिर अपनी हथेली में लिपटे नोटों को गिनने लगी वो पचास रूपये थे , दस फिर भी कम थे , पास खड़ी साथ आई अपनी महिला से उसने दस रूपये लिए और मेरे व्यापारी मित्र को दे दिए ...और हल्की सी मुस्कान लिए दूकान से सभी चल दिए ......मैं दूर बैठा सब कुछ देख रहा था , मुझे लगा के टार्च के कुछ पैसे कम कर देने चाहिए थे मेरे दोस्त को लेकिन उसने नहीं किया... मुझे अपने दोस्त पर बहुत गुस्सा आ रहा था ...लेकिन क्या किया जा सकता था मैं एक व्यापारी की नज़र से उन लोगों को नहीं देख रहा था ... मुझे उस महिला के हाथों में लिपटे हुए पचास के नोटी की कीमत ५०० से भी ज़यादा लग रही थी , कतनी महनत से उसने वो पैसे कमायें होंगे ? या कितनी बचत की होगी टार्च खरीदने के लिए ..उसके पैसो की कदर करने वाला मेरा दोस्त शायद नहीं था , कुछ पैसे कम कर भी देता तो उसका क्या जाता ? लेकिन ये घटना उसे एक अच्छा व्यापारी होने का संकेत ज़रूर दे रही थी, लेकिन मेरा मन विचलित हो गया था , पचास के नोट के पीछे का दर्द मैं उस महिला के चहरे पर देख रहा था , मैं इस बात को बखूबी समझ रहा था की ये पैसा कितनी महनत के बाद कमाया गया है ..इन पैसो में अगर एक रूपये की भी बचत हो जाये तो ये उस महिला के कितने आम आ सकता है इसका मुझे अंदाजा था लेकिन ऐसा हुआ नहीं ....मैं अपनी उदास रात लिए वापस लौट आया ... हाँ इतना ज़रूर है को वो पचास का नोट मुझे आज भी ये याद दिलाता रहता है की उसकी कीमत ५०० से कहीं ज़यादा है ....

Monday, July 21, 2008

कानून के जानकारों मेरी आवाज़ सुनो...

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वकील साहब ,


नमस्कार ........


बहुत समय से मेरे मन में देश के कानून को लेकर कई सरे सवाल दौड़ रहे है ,मैं ख़ुद से सवाल करते करते थक गया हूँ , लेकिन जवाब अब भी नहीं मिला है ,


क्या हमारे देश के कानून से बढ़कर भी कुछ है ???


इसमें तो कोई दो राय नहीं हो सकती है के हमारे देश का कानून लचर है धीमा है फैसलों में कई कई साल लग जाते है लेकिन फ़िर भी फैसले होते नहीं है ? देरी की वजह से साक्ष भी मिटते जाते है , आरोपियों को इसका फायदा भी मिल जाता है वो बच निकलते है ?


लेकिन हमारा कानून कहता है के भले ही १०० आरोपी छुट जायें लेकिन एक बेगुनाह को सज़ा नहीं होनी चाहिए , ये अच्छी बात है बेगुनाह को सज़ा ना हो , लेकिन मैंने जो अपने आस पास देखा है उसमें कई ऐसे मामलें है जिसमें बेगुनाह को आरोपी बना दिया जाता है , जेल में ठूस दिया जाता है , केस चलता रहता है , पेशी आती जाती रहती है , सालों बीत जाते है , अखबारों में खबरें आती रहती है फलां ने हत्या कर दी , बलात्कार कर दिया , पुलिस अपनी ब्रीफिंग में उसके ख़िलाफ़ पुरी कहानी छपवाती रहती है , कुल मिलकर उसकी चरित्र हत्या कर दी जाती है और वह बलात्कारी मानसिकता के सामने बेबस होता है , बेबस इंसान बेचारा क्या कर सकता है ? उसवक्त उसकी कोई सुनने वाला नहीं होता है , { हाल ही में आरुशी हत्याकांड में भी उनके पिता पर कुछ एस तरह के आरोप भी लगे थे }


लेकिन रहत की बात ये होती है की माननीय न्यालय उसे बा इज्ज़त बरी कर देता है , लेकिन क्या फ़िर वो अपनी पुरानी जिंदगी में वापस लौट सकता है ? क्या समाज उसे फ़िर से अपना लेता है ? क्या उसके अपने या उसके आसपास के लोग उसे स्वीकार कर लेते है ? क्या उसकी खोई हुई इज्ज़त वापस आ जाती है { कोर्ट के इस फैसले से क्या इज्ज़त बरी किया जाता है } नहीं साहब नहीं आती है , समाज उसे दुबारा स्वीकार नहीं करता है , उसपर लगा कलंक सारी जिंदगी उसके साथ रहता है , और उसके जीवन को नर्क बना देता है , वो किसी को मुह दिखाने के लायक नहीं रहता है ,
अब वो क्या करे? उसके साथ जो बीता है उसका दोषी कौन है ? अदालत या समाज ? क्या समाज अदालत से बड़ा है ? जो उसे स्वीकार नहीं करता या अदालत के फैसले को नहीं मानता ?या फिर के पुलिस ? जिसने उसका चरित्र हनन किया है ? या के वो पत्रकार या अखबार जिसने ये सब छापा है ? क्यूँ के अदालत से बा इज्ज़त बरी होने की खबर तो उसने नहीं छापी ? दोषी चाहे कोई भी हो ये बात तो तय है की उसकी ज़िन्दगी तो बर्बाद हो गई !

ये हर उस आप आदमी की समस्या हो सकती है जिसने अपराध ना किया हो लेकिन इस तरह की सज़ा सारी ज़िन्दगी भुगत रहा हो ? मुझे जवाब चाहिए , सीधा सादा सा , बिना किसी दावं पेच के , क्या मेरी ज़िन्दगी मुझे वापस लौटा सकते हो ?

Sunday, July 20, 2008

बना दो मुझे भी सांसद एक बार !!!

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मुझे भी एक सांसद बना दो ,
चाहे उसपे हतकड़ीयां लगवादो !
जेल में तुम मुझको सडा दो ,
मुझे भी एक सांसद बना दो !!
कभी आएगी जब मेरी भी बरी ,
खूब करूँगा मैं अपनी खरीदारी
कभी इधर तो कभी उधर लुड़क जाऊंगा ,
जिधर जियादा मिलेंगे वहीँ बिक जाऊंगा
प्रधानमंत्री के घर खाने को जाऊंगा ,
हर तरफ होगा , सिर्फ मेरा बोलबाला
कितने में बिका है ये सांसद साला
गाली भले ही मैं सबकी खाऊँगा ,
एक एक वोट की कीमत लगाऊंगा !!
पार्टी कहे चाहे मुझको दलाल
देश हित में फिर भी बिक जाऊंगा ,
मिलजायेगी मुझको भी एक लाल बत्ती
केबिनेट का मैं भी एक हिस्सा कहलाऊंगा
देश की सेवा में खुद को लगाऊंगा ,
बची कुची खुरचन मैं खुद ही खाजाऊंगा !!
फिर जब आएगी चुनाव की बारी
मिलूँगा जनता से मैं बारी बारी ,
कहूँगा सभी से मैं सिर्फ एक बात
बना दो मुझे फिर से सांसद एक बार !!!
{{{ दिल पे मत ले यार , जो बन जाए सरकार , तो हो गया बंटाधार }}}

Tuesday, July 15, 2008

काजल की कोठरी ???

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देश आज जिस राजनैतिक अनिश्चिताओं के दौर से गुज़र रहा है , इन्ही सब के बीच ये भी ख़बर आ रही है के सरकार बचाने के लिए यू.पी.सांसदों की खरीद फरोख्त में लगा हुआ है ? ये कह रहे है ए.बी.वर्धन !
क्या सच में हमारे देश के संसद बिकाऊ है ? क्या उन्हें ख़रीदा जा सकता है ? हालाँकि एक बार टीवी पर देखा था कुछ लेते -लेते , लेकिन सभी ऐसे होंगे ? कुछ नही भी , काजल की कोटरी में काला होना तो लाज़मी है ? लेकिन वर्धन साहब ने कहा है तो कुछ सोच समझ कर ही कहा होगा ? उनका पुराना तजुर्बा हो सकता है ???
लेकिन अगर ये सच है तो ये सच, सच में बहुत ही शर्मनाक है ? देश का प्रतिनिधित्व करने वाले अगर बिकाऊ हो जायेंगे तो देश का क्या होगा ? और वेसे भी देश की फिकर है भी किसको ?अगर एक सांसद बिकता है तो वह किस श्रेणी में आता है ..देश द्रोह या देश हित ? बिका तो सरकार बच सकती है ? चुनाओ का भोझ गरीब जनता पर न पड़े हो सकता है इसका ख़याल सांसद जी को हो ? एक बात तो है हमारे देश मैं सब कुछ बिकाऊ है बस इन्तेज़ार है तो एक अच्छे खरीददार की , जो हमे खरीदते हुए अपने बदन में कोई कैमरा ना छुपा रखा हो ???
लेकिन ये तो सच है की जिस तरह से ये खबरें आ रही है कि सरकार बचने के लिए सांसदों कि खरीदी कि जा रही है , कुछ सांसदों को तो जेल से भी निकला जा रहा है एक वोट के लिए , जिन्हें आजीवन कारावास की सजा हुई है, ये देश कि गन्दी राजनीति का एक चहरा है ? पता नहीं इस दलगत राजनीति के और कितने चहरे दिखेंगे ?लोकतंत्र की ये मिसाल एक काजल की कोटरी बन के रह गया है ? अब इसमें कुछ साफ़ सुत्रि छवि के लोग भी होंगे तो इससे खुद को कैसे बचायेंगे ???

Wednesday, July 9, 2008

क्यूँ ना मैं आत्महत्या कर लूँ ???

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वो शाम का वक्त था , मैं से ज़माने की भागदौड़ से कही दूर तनहइयो में बैठा, अपनी ज़िन्दगी का हिसाब किताब कर रहा था, सोच रहा था के मैंने इस दुनिया में क्या खोया और क्या पाया ???डूबते हुए सूरज की लों मेरी आखों से टकरा रही थी, और मेरे आंसू मेरी आखों का साथ छोड़ रहे थे, मन में हजारों सवाल दौड़ रहे थे, मेरे साथ ही ऍसा क्यूँ हुआ ? हमेशा मेरे साथ ही ऍसा क्यूँ होता है ? भगवन तुम ने मेरे साथ ऍसा क्यूँ किया ? फिर अचनक मेरे मन में एक सवाल आया ? क्यूँ ना में आत्महत्या कर लू ???मेरे पल भर के इस फैसले ने मुझे कुछ सोचने को मजबूर कर दिया ? अगर में मर गया तो क्या होगा??? मेरे घर में मेरे अंतिम संस्कार की तयारी चल रही है , मेरे बुजुर्ग पिता का चहरा मायूस है उनकी आँखे पत्थर हो गयी है , जिस उम्र में उन्हें मेरे साथ की ज़रूरत है मैने छोड़ दिया है , वो किसी तरहा बस खुद को संभाले हुए है ? बस उन्हें अब इसी ग़म से जीना है,दूसरी तरफ वो जिसने मुझे नाज़ो से पाला,मेरी हर छोटी बड़ी जिद को पूरी करती रही , मेरी हर गलतियों को माफ़ करती रही , बस मुझे खुश देखने के लिए पता नहीं उसने क्या क्या किया , मेरी माँ ...उसके आसूं तो जेसे थमने का नाम ही नहीं ले रहे है , रो-रो के उसने अपना बुरा हाल कर लिया है , उसे अब भी यकीं नहीं है के मै अब इस दुनिया में नहीं हूँ ?? उसे अब भी ऐसा लगता है के मै अभी उठ जाऊंगा और कहूँगा ...माँ... ??? मेरी नादान माँ ??? कितने सपने देखे थे मेरे लिए ? मैंने सब तोड़ दिए.. उनके सरे अरमानो का गला घोट दिया ... ना जाने अब वो इस हादसे को कब भूलेंगी ??? शायद सारी ज़िन्दगी नहीं !कुछ भीड़ सी दिखी , भीड़ के बीच में मेरा मायूस भाई नम आखे लिए मेरे कुछ अज़ीज़ दोस्तों को कुछ बता रहा था ? सब बहुत उदास थे , दुखी थे , सबको मुझे खोने का ग़म था ? बहुत से लोग मुझसे बहुत सी बाते कहना कहते थे ? लेकिन अफ़सोस मैं तो इस दुनिया में नहीं था , मैं दूर खड़ा सब देख रहा था , अपने किये पर शर्मिंदा था , अपने किये की माफ़ी चाहता था , मुझे अपने माता पिता की पीड़ा देखी नहीं जा रही थी , दोस्तों को खोने का ग़म सता रहा था , लेकिन मुझे माफ़ी नहीं मिल रही थी, क्यूँ की मैं इस दुनिया में था ही नहीं !!!इतना सोच मेरा बदन कापने लगा , मैने अपना सर उपर किया तो देखा सूरज डूब चूका था , टिमटिमाते तारे और धुन्दला सा चाँद दिखा, मैंने अपनी नम आखों को पोछा, मुझे अपने उस सवाल पर पछतावा हुआ , और फिर मेरे मन में एक सवाल आया ? मेरी एक ज़िन्दगी कितनी जिंदगियों से जुडी है ? मेरी ज़िन्दगी मेरे लिए ही नहीं दुसरो ले लिए भी है मेरे अपनों के लिए भी है और उनका ये हक मैं उनसे भला कैसे छीन सकता हूँ !!!{{{ यह लेख एक काल्पनिक सत्य है , इस तरह के विचार अगर आप के मन में हो तो कृपा कर इसे निकाल दे , हम आप के आभारी होंगे , }}}

Tuesday, July 8, 2008

एन.डी.ए + यू.पी.ए का गठबंधन ???

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देश में गठबंधन की राजनीति के बदलते समीकरण को देख लगता तो यही है की कुछ देनो में ये खबर आनेवाली है के यू .पी .ए और एन .डी. ए का गटबंधन हो गया है ???
देश की राजनीति में गठबंधन की ये नय्या देश को किधर लेकर जायेगी , या डूबयेगी , इसका अंदाजा लगाना तो कोई मुश्किल कम नहीं है ? मुश्किल इसलिए नहीं है ये तो हमने देखा है एक वोट से सरकार को गिरते ...!!!
अब अचानक से हमारे देश प्रमी नेताओ को देश की याद ४ साल बाद आये या ४० साल बाद उन्हें जब लगता है तो वो देश हित में समर्थन दे देते है ??? खुद बेचारे भले ही कितनी ज़िल्लत उठाए हो ,उसी पार्टी से जिसे अब वो समर्थन करने जा रहे है ??? कभी खदेड़ दिए गए थे ,अब १० जनपद का दस्तरखान उनके लिए ही सजाया जा रहा है ??
चलिए जाने दीजिये राजनीति में हालत बदलते रहते है , जाने दीजिये ??? क्यूँ भाई??? जब वोट मांगने आये थे तो उसी पार्टी की बुराई कर रहे थे , कह रहे थे मुझे जीतादो मैं सब ठीक कर दूंगा ? अब पूरी की पूरी पार्टी ही उस पार्टी से मिला लिए ?? हाँ देश हित ???गुस्सा छोड़ चलो कुछ काम की बाते करते है ...
हमारे देश में चल रही ये गठबंधन की राजनीति या कहे के केकड़े की दोड़ , इसमें जीत किसकी होगी ये किसी को नहीं मालुम लेकिन हार तो हमारी ही होगी ? कुछ किया तो मुसीबत , ना किया तो मुसीबत , हाथ पैर जोड़ते रहो , ५ साल चलने दो , फिर चाहे जो कहलो ???
जब तक देश में एक पार्टी की सरकार ना हो ,और उसे देश हित का धयान हो , तब ही देश का विकास हो सकता है ? नहीं तो हर कोई आयेगा हमे नोचेगा हमे खाएगा बचाकुचा भी लेके जायेगा ,हम यू उल्लू की तरह देखते रह जायेंगे ???
लेकिन इन सब का ज़िम्मेदार कौन है ...हम ??? नहीं तो हमने क्या किया ? देखा के कम चोर कौन है उसे बैठा दिया , अब चोर और चोर तो मौसेरे भाई है ना ???देश में गठबंधन या अस्थिरता देश को कमज़ोर कर रही है , इसका कोई हल निकलना बेहद ज़रूरी है नहीं तो देश हित के नाम पर नेता बिकते रहेंगे , गठबंधन होता रहेगा ,टूटता रहेगा , और हम अपने देश को यूही लुटते हुए दखते रहेंगे ???

पत्नी प्रताड़ित पुरूष संघ जिंदाबाद !!!!!!

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नारी शक्ति जिंदाबाद , नारी पड़ेगी विकास गढेगी , बेटा बेटी एक सामान , सबको मिले सामान अधिकार , ये सुनने में जितना अच्छा लगता है उसका पालन हो ये उससे कहीं ज़दा अच्छा है ? और कुछ हद तक हो भी रहा है ? हमेशा दहेज़ के नाम पर या नारी होने की वजह से प्रतारणा झेल रही नारी को जो कानूनी हक दिए गए है वो भी जायज़ है , लेकिन सोचये अगर उन्ही अधिकारों का नाजायज़ फायदा उठाया जाये तो क्यूँ न बने .....पत्नी प्रताड़ित पुरुष संघ ???????छत्तीसगढ़ में इन दिनों पत्नी प्रताड़ित पुरुष संघ की काफी चर्चा है , ये वो बेचारे हैं जो अपनी पत्नी के मारे है ? पत्नी की प्रताड़ना इतनी झेल चुके है की अब इन्हे ये कहते हुए शर्म भी नहीं आती है ?प्रताड़ित पुरुषों की संख्या लगातार बदती ही जा रही है , इनमें २५ साल के विवाहित पुरुष से लेकर ६० साल तक के भी शामिल है , हर कोई प्रताड़ित है ?? कई तो बेचारे कानूनी दाव पेज में इतने उलझे है की निकल ही नहीं पा रहे है , कईयो ने ज़िन्दगी में पहली बार जेल देखी है ६-६ महीने जेल में रहे है , पूरा परिवार जेल जा चूका है क्या बहन ,माँ बाप , भाई और दूर के रिश्तेदार भी इससे अछूते नहीं है , हुआ क्या ???? पत्नी की एक शिकायत??? पूरा परिवार ही गंगस्टर हो गया ? ६० साल के बुजुर्ग को भी जेल की हवा खानी पड़ती है , जिसने कभी बड़े ही शान से अपने बेटे की शादी की थी ??सवाल है अब क्या होगा ??? पूरा परिवार बर्बाद ?????किसी वक्त प्रताड़ित रही महिलओं को जो कानूनी अधिकार मिले है उनका दुरूपयोग उनके लिए तो फायदेमंद साबित हो सकता है लेकिन उनका क्या जो उस कानून की मार झेल रहा है ?

Monday, July 7, 2008

ये एक अन्न का दाना देगा मुझको मनमाना !!!!!

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आज देश के हालात जिस तरह से बिगड़ते जा रहे है उसे देख के लगता है की वो दिन दूर नहीं जब हमारे देश से गरीबी पूरी तरह से दूर हो जायेगी ?जब गरीब ही नहीं रहेगा तो गरीबी कहाँ रहेगी?लेकिन सच तो ये है की जिस तरह से महगाई अपने पैर पसार रही है उससे लगता नहीं के जल्द ही इसपर काबू पाया जा सकेगा ??मुझे लगता है की से देश की सबसे बड़ी समस्या खाद्य समस्या होने जा रही है ? मूल्य वृद्धि , उपज , या जनसँख्या इसका एक कारण हो सकते है ??? लेकिन सबसे बड़ी समस्या है है उसका असीमित उपभोग?जिस तरह हम लाखो टन अनाज रोज़ खा जा रहे है , ज़रूरत ना हो तो भी खा रहे है , या उसे बर्बाद कर रहे है ,एसे हालत एक दिन हमे कहा लेकर जायेंगे ??? ज़रा सोचये ??आमिरो से मुझे कोई नाराज़गी नहीं है वो तो खरीद लेंगे , लेकिन उनका क्या जो आप भी सिर्फ एक वक्त ही खाकर गुज़ारा करते है ?? अनाज की कमी ही उसकी महंगाई का कारण है ? अगर अनाज असीमित हो तो शायद इतना महंगा ना हो ??? गरीब भी खरीदने की हिम्मत जुटा ले ??? आज भी कितने ऐसे है जो वडा पाओ में गुज़ारा करते है ? * खाद्य समस्या से बचने के किये हमे खुद ही प्रयास करना चाहिए , हमे उतना ही खाना चाहिए जितने की ज़रूरत हो , अगर हम एक रोटी ही बचाते है तो ये समझे के एक रोटी आप के किसी भूके इन्सान को खिलाई है ,अनाज की बचत ही हमे इस समस्या से बचा सकती है ???

 

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