Tuesday, July 22, 2008

उनकी हथेली में लिपटा वो पचास का नोट !!!


मैं उस दिन खुश था , सोचा चलो आज बाज़ार की सैर की जाए , शाम होते ही मैंने साफ़ सुतरे कपड़े पहने , अपना पसंदीदा डीओ लगाया और निकल गया बाज़ार की तरफ़ ...फ़िर मुझे याद आया मेरा पुराना अज़ीज़ दोस्त जिसकी इलेक्ट्रिकल्स की शॉप है बाज़ार में , बस सोच ही लिया आज की शाम उसके साथ ही बिताना है , पहुचते ही उसने मुझे देखा ..खुश हुआ मैं भी खुश हुआ और हसी ठिठोली करते हुए हम दोनों उस माहोल में ढल गए , उसके ग्राहक आते रहे वो उन्हें निपटता रहा , फ़िर कुछ देर बाद मैंने ४ से ५ लोगों को उसकी दूकान में आते हुए देखा , वो थोड़े डरे सहमे से लग रहे थे शायद किसी पास के गावं से आए थे , उनके कपड़े कुछ गंदे से थे चप्पल थोड़ी पुरानी हो चली थी मोचियों की नक्काशी भी दिख रही थी , लगभग ४० की उस महिला से मेरे मित्र से कहा ....टार्च है क्या ? मित्र ने कहा है ... और टार्च लाने चला गया ...इस बीच वो महिला अपने साथ आए २-३ लोगों से बात करने लगी ... मित्र आया और टार्च दिखाने लगा ...ये १०० का है ..ये ८० और ये ६० का है ...महिला ने कहा इतना महंगा ?? और नहीं तो क्या सस्ता तो लगा रहा हूँ ...लेकिन ये जवाब शायद उस गरीब के लिए ही था ? क्यूँ की इससे पहले वो कुछ साफ़ सुतरे लोगों से अच्छे से बात कर रहा था ? सहमी सी महिला अपने साथ आये लोगों की तरफ देखने लगी .. फिर अपनी हथेली में लिपटे नोटों को गिनने लगी वो पचास रूपये थे , दस फिर भी कम थे , पास खड़ी साथ आई अपनी महिला से उसने दस रूपये लिए और मेरे व्यापारी मित्र को दे दिए ...और हल्की सी मुस्कान लिए दूकान से सभी चल दिए ......मैं दूर बैठा सब कुछ देख रहा था , मुझे लगा के टार्च के कुछ पैसे कम कर देने चाहिए थे मेरे दोस्त को लेकिन उसने नहीं किया... मुझे अपने दोस्त पर बहुत गुस्सा आ रहा था ...लेकिन क्या किया जा सकता था मैं एक व्यापारी की नज़र से उन लोगों को नहीं देख रहा था ... मुझे उस महिला के हाथों में लिपटे हुए पचास के नोटी की कीमत ५०० से भी ज़यादा लग रही थी , कतनी महनत से उसने वो पैसे कमायें होंगे ? या कितनी बचत की होगी टार्च खरीदने के लिए ..उसके पैसो की कदर करने वाला मेरा दोस्त शायद नहीं था , कुछ पैसे कम कर भी देता तो उसका क्या जाता ? लेकिन ये घटना उसे एक अच्छा व्यापारी होने का संकेत ज़रूर दे रही थी, लेकिन मेरा मन विचलित हो गया था , पचास के नोट के पीछे का दर्द मैं उस महिला के चहरे पर देख रहा था , मैं इस बात को बखूबी समझ रहा था की ये पैसा कितनी महनत के बाद कमाया गया है ..इन पैसो में अगर एक रूपये की भी बचत हो जाये तो ये उस महिला के कितने आम आ सकता है इसका मुझे अंदाजा था लेकिन ऐसा हुआ नहीं ....मैं अपनी उदास रात लिए वापस लौट आया ... हाँ इतना ज़रूर है को वो पचास का नोट मुझे आज भी ये याद दिलाता रहता है की उसकी कीमत ५०० से कहीं ज़यादा है ....

4 टिप्पणियाँ:

Udan Tashtari on July 22, 2008 at 5:20 PM said...

बिल्कुल सही...५ रुपये के मटके वाले से ५० पैसे के लिए बहस करने वाले कार खरीदने में ८,५७,५३२.७८ का पूरा चेक देते हैं मुस्कराते हुए. :)

डॉ .अनुराग on July 23, 2008 at 1:13 AM said...

एक संवेदनशील ओर दिल को जाग्रत करने वाली पोस्ट.....

Vivek Gupta on July 26, 2008 at 11:28 AM said...

मुझे लगा अंत में 10 या 20 रुपये आप भी देंगें । दिल पर मत लीजिये । बड्रा दिल कीजिये ।

jr... on September 3, 2008 at 9:41 PM said...

mehgai ki is jamane main paise ki keemat ko bayaan karne ka isse acha jariya nahiin ho sakta...

bada hi sambedansheel post hai...
Likhte rahiye

 

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