Friday, July 25, 2008

समाज की राह देखती रही उसकी लाश !!!



बड़े ही अफ़सोस की बात है लेकिन ये सच है की इक्कीसवीं सदी में भी हमारे समाज का रूढीवादी चहरा अब भी नहीं बदला है , आज भी लोग अपने द्वारा बनाये गए समाज के तुगलकी फरमानों का शिकार हो रहे है , बात आज की नहीं बीस साल पुरानी है दुर्गा प्रसाद को ये नहीं मालुम था के ये फैसला मरने के बाद भी उसका पीछा नहीं छोडेगा , और उसने एक दलित से प्रेम विवाह कर लिया !
समाज से उसे बेदखल कर दिया गया पूरा का पूरा गावँ उसके विरोध में खड़ा हो गया उसके अपने पराये हो गए , उसके साथ ना कोई बात करता और ना ही कोई उनके घर जाता , ये सज़ा उन्हें दूसरी जाति में शादी करने की मिली , उस वक्त से दुर्गा प्रसाद घीनोने समाज का बदनुमा चहरा रोज़ ही देखता रहा कभी दूकान में कभी सड़क पर या कभी चौपाल पर !
शायद दुर्गा को ले लगा होगा के समाज का मुखौटा लगाए मेरे अपने मुझे एक दिन फिर से स्वीकार कर लेंगे ? लेकिन ऐसा हुआ नहीं, और एक दिन दुर्गा की आत्मा ने भी उसके शारीर का साथ छोड़ दिया , घर में मातम छाया हुआ था दुर्गा प्रसाद की पत्नी परेशान थी क्यूंकि दुर्गा की अर्थी को कन्धा देने के लिए गावं का एक आदमी भी तैयार नहीं था , दुर्गा ने अछूत लड़की के विवाह जो किया था , दुर्गा की लाश यूही घंटो पड़ी रही लेकिन उसे हाथ लगाने वाला कोई नहीं था ,
पूरा का पूरा गावँ तमाशा देखता रहा लेकिन मदद के लिए कोई भी आगे नहीं आया , मरने के बाद भी दुर्गा प्रसाद समाज से बहिष्कृत था फिर किसी तरह दूसरी समाज सेवी संस्था ने उनका अंतिम संस्कार किया !!!

2 टिप्पणियाँ:

Anil Kumar on July 25, 2008 at 7:53 PM said...

http://in.youtube.com/watch?v=5KRb2f9WUAk

परमजीत सिहँ बाली on July 25, 2008 at 10:33 PM said...

यह छूआ छूत समाज के लिए कैंसर की तरह हैं।लेकिन अब शहरों में परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं।

जरुर पढें दिशाएं पर क्लिक करें ।

 

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