मुझे भी अपनी ज़िंदगी जीने दो ,
मैंने भी आखों में कई खाब सजाए हैं !!!
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भारत के नक्शे मे अगर आप ने कहीं छत्तीसगढ़ को देखा है या इसे जानने की कोशिश की है तो बस्तर का ज़िक्र ज़रुर आया होगा ? बस्तर में रहने वाले आदिवासियो को जानने की उनके जिवनशैली को नज़दीक से समझने की जिज्ञासा हम शहरी लोगों को कुछ ज़यादा ही रहती है , यहाँ तक के विदेशो तक से लोग इनपर अध्यन करने के लिए चले आते है लेकिन इनके दर्द को आज तक शायद ही किसी ने समझा है या महसूस किया है ?
नक्सलवाद की मार झेल रहा बस्तर इन दिनों एक ऐसे विनाश की ओर बढ़ रहा है जिसका अंदाजा न वहाँ रहने वाले लोगों को है और का सरकार को ? नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए चलाये जा रहे सलवा जुडूम का अंजाम इतना भयंकर हो सकता है के कहीं ऐसा न हो के बस्तर से आदिवासियों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए ?
नक्सलवाद से निपटने के लिए सलवा जुडूम का जन्म हुआ , सलवा जुडूम में वो आदिवासी शामिल हुए जो नक्सल पीड़ित थे , गांव के गांव खली हो गए और कम्पे में रहने लगे , लेकिन अब भी बहुत से आदिवासी अपनी ज़मीन अपना घर अपनी मिटटी को छोड़ कर नही रहना चाहते है वो अपनी ही ज़मीन में जीना मरना चाहते हैं ,लेकिन ऐसे आदिवासीयों को अब अपनी मर्जी से अपनी ज़िंदगी जीने अक हक नही है , उनकी आज़ादी में न जाने क्यों ग्रहण लग गया है , गावं में रहते है तो सलवा जुडूम के लोग उन्हें नक्सलियों का समर्थक कहते है ,गावं में रहते है तो नक्सली उन्हें जीने नही देते , गावं में रहते है तो उन्हें कोई भी सरकारी सुविधाएँ नही मिलती है, इतना अत्याचार आदिवासियों के साथ क्यों किया जा रहा है आख़िर उसका कसूर क्या है ? वो भोले भले मासूम अपनी ज़िंदगी अपनी तरह से जीना कहते है लेकिन उन्हें वो भी नही दिया जा रहा है आख़िर उनका दर्द कौन समझेगा ? उनकी आखों में जीने की उम्मीद है , उन्होंने भी कई खाब सजाए होंगे , उन्हें किसी के सहारे की ज़रूरत भी नही है ना ही उन्हें दुनिया की फ़िक्र है , वो जिस हाल में है खश हैं , उनका कोई कसूर नही है ना वो नक्सली है ना वो सलवा जुडूम से जुड़े हुए है और ना सरकार हैं ,
शुक्र है इस हाल में भी उसे जीने की आस है !!!!!!!!!!!!!!
Friday, May 30, 2008
Saturday, May 24, 2008
आई पी एल का दर्द !!!!!!!
आई पी एल की शुरुवात जिस गर्मजोशी से की गई थी ,अंजाम भी कुछ इसी तरह का सोचा गया था लेकिन जिस तरह से स्टार टीमे सेमी फाईनल तक नही पहुच सकी है इससे टीम के मालिको का दर्द साफ झलकता है !
कभी सोचा नही था की विजय माल्या अपनी टीम को हारते हुए दखे तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी ? किंग खान बिना कुछ कहे सब कुछ कहना चाहते है लेकिन खेल के चक्कर मे वो अपनी हीरो वाली छवि को धूमिल भी नही करना कहते है ,
चाहे कुछ भी हो लेकिन टीम के मालिको का दर्द साफ झलकता है और हो भी न क्यों आख़िर करोडों का सवाल जो है , इस क्रिकेट ने अगर धनकुबेरो के माथे मे पसीना ला दिया है वही खिलाड़ियों की साख भी कम हुई है , सवाल ये है की जिन खिलाड़ियों को इस देश मे भगवन की तरह पूजा जाता है वो सरे बाज़ार ख़ुद को नीलाम कर दिए , बोली लगती रही और क्रिकेट के भगवन बिकते रहे , करोडों के भाव भी मिले , लेकिन जब प्रदर्शन की बारी आई तो शुन्य ???
अब इनपर करोडों खर्च करने वाले इन्हे कुछ बुरा भला कहे तो क्या ग़लत कहे ? आखीर आप को इन्होने ख़रीदा है ये आप के मालिक है बुरे प्रदर्शन मे बुरा बर्ताव तो लाज़मी है ?
वेसे ई पी एल २० -२० से बीसीसीआई को ये तो ज़रुर समझ मे आ गया होगा के पुराना बदल दो और नया ले जाओ ??? क्रिकेट के इस खेल को देश की गरिमा से जोड़ने वाले कम से कम इन नए और उभरते हुए खिलाडियों को देखकर ख़ुद को गोरवान्वित तो मह सुस करेंगे ????
Sunday, May 18, 2008
मैंने चुप रहकर सब कहने की अदा सीख ली है !!!
कुछ ने मेरे बारे में ये समझ लिया के मैं कुछ नहीं कहता , मेरे बंद होटों को मेरी कमज़ोरी समझने लगे , मैं फ़िर भी चुप रहा , मुझे हर वक्त ये लगता क्या मैं इतना कमज़ोर हूँ ?
किसी की आगे बढ़ने की होड़ ने मुझे पीछे ढकेलने का बखूबी से काम किया , मैं फ़िर भी चुप रहा , मैंने अब सोच लिया है ख़ुद को साबित करने का , मुझे अब ख़ुद को समझना है ,
मुझे अब भी किसी से शिकायत नहीं है , मैं अब भी चुप हूँ लेकिन चुप रहकर सब कहने की अदा सीख ली है !!!
किसी की आगे बढ़ने की होड़ ने मुझे पीछे ढकेलने का बखूबी से काम किया , मैं फ़िर भी चुप रहा , मैंने अब सोच लिया है ख़ुद को साबित करने का , मुझे अब ख़ुद को समझना है ,
मुझे अब भी किसी से शिकायत नहीं है , मैं अब भी चुप हूँ लेकिन चुप रहकर सब कहने की अदा सीख ली है !!!
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