Saturday, January 31, 2009

चलिए ...ज़मी पर ख़ुदा ढूँढ़ते है !!!


मैं... एक दिन कुछ अपनी ज़िन्दगी से परेशां ...अपनी किस्मत का हिसाब किताब कर रहा था , हज़ारो सवाल मेरे इर्द गिर्द घूम रहे थे और मुझे चिढ़ा रहे थे बार बार मुझसे ये कहते ...आख़िर मैं ही क्यूँ ? हमेशा मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ होता है ? ये तकलीफें ये मुसीबते हमेशा मुझपर ही क्यूँ आती है ? इसी तरह के हज़ारो सवाल मेरी बेचेनियों को और भी बढ़ा रहे थे ,सवाल जो कभी थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे ?...और जवाब जो मुझसे कोसो दूर थे ...कहीं सुना था के ख़ुदा तो हर जगह है तो लगा के ज़मी पर ख़ुदा ढूँढ़ते है ....



अभी बस चलना शुरू किया ही था के अचानक नज़र उस जगह पर पड़ी जहाँ कभी दोस्तों की महफिले सजा करती थी , उसी जगह एक दोस्त भी मिला मुसाफिरों की तरह ...मुलाकात बहुत दिनों के बाद थी शायद इसलिए मिलनसारी भी कुछ कम नहीं थी , मैंने उसका हाल चाल जाना और अपना भी बताया ...कुछ हालात मुनासिब नहीं है कुछ परेशां सा हूँ ...उसने सारी बातें सुनकर मुझसे कहा ...फिकर मत कर यार ...एक दिन सब ठीक हो जाएगा ...भगवन सब ठीक कर देगा ...उसके पास ना ही मेरे कोई सवालों का जवाब था और ना ही मेरी किसी परेशानियों का कोई हल ...लेकिन फ़िर भी उसकी बात मुझे सुकून पहुँचा रही थी ...शायद वो जो कह रहा है वैसा ही कुछ हो ?....थोड़ी सी उम्मीद लिए मैं अपनी अगली मंजिल की तरफ़ चल निकला ...
सफर तो लंबा था लेकिन परेशानियाँ भी साथ चल रही थी ...थोड़ी दूर तक चलने के बाद ,मेरी यामाहा ख़राब हो गई , कुछ दूर धक्का देने के बाद मुझे एक बोर्ड दिखा { सतपाल सर्विसिंग सेंटर } लिखा था ... हमारे यहाँ ॥होंडा यामाहा स्कूटर ठीक किया जाता है मैंने उसे परेशानी बताई और बाइक बनवा कर चल दिया ...धुप थोड़ी बढ़ रही थी ...गला भी सूख रहा था ...सड़क पर ही एक गन्ने के रस की दुकान थी { बजरंग गन्ना रस } एक गिलास पीने पर गले को बड़ा ही सुकून मिला ...लेकिन मैं थोड़ा जल्दी में था ...मैं वहां से चला गया ...जिस काम से आया हूँ वो तो अभी तक पुरा हुआ नहीं है ...चलूँ अपनी तलाश जारी रखूं ...
शाम होते होते मैं कुछ नाउमीद सा होने लगा , मैं जिसकी तलाश में निकला हूँ वो तो मुझे कहीं नहीं मिला ...सुबह से शाम होने को है , सवाल फ़िर से थे क्या मैं फिज़ूल महनत कर रहा हूँ कुछ नहीं मिलना जुलना है ...सड़क के पास अपनी बाइक खड़ा कर के बैठा रहा ...सड़क पर सनसनाती भागती गाडियां और हार्न की तेज़ आवाज़ ... थोड़ी देर बाद मैंने अपने दोस्तों से फ़ोन पर बात की और उन्हें अपने पास बुलाया ...शिव तो आ गया लेकिन खोमेंद्र को आने में वक्त लगा ॥उसे ऑफिस में कुछ ज़ियादा काम था ...मैं और शिव आपस में बात करते रहे ॥इसी बीच मैंने अपनी ऑफिस से जुड़े कुछ काम उसे बताये और उसने उसे मुस्कुराते हुए करने की बात कही ...मुझे थोड़ा का सूकु और मिला उनका जवाब सुनकर ...खोमेंद्र भी अपने काम से कुछ परेशान था वो मुझे अपनी परेशानियाँ बता रहा था ...मैंने उसे सब ठीक होने का भरोसा दिया और रात होने का हवाला देकर सब अपने अपने घर आ गए !
रात थोड़ी ज़ियादा होने की वजह से घर की लाइट बंद हो गई थी ॥मुझे लगा सब सो रहे है ...लेकिन ऐसा नहीं था मेरी आहट सुनकर अम्मी और अब्बू जाग गए शायद वो सोये ही नहीं थे ...वो मेरा इंतज़ार कर रहे थे ...मेरे कमरे में आकर अब्बू ने पुछा ...अनवर तू आ गया ..मैं ...हाँ ... तब ही अम्मी की आवाज़ आई ..खाना लिकाल दूँ ... मैं ..हाँ ...खाना खा लेने के बाद बिस्तर पर लेटे हुए सोचता रहा ...आख़िर ख़ुदा है कहाँ ? ....इस ज़मी पर उसके नाम कई है कोई ख़ुदा कहता है तो कोई भगवान् कोई रब ...तो कोई और कुछ कहता है लेकिन वो है कहाँ जिसे मैं दिन भर ढूँढता रहा वो इस ज़मीं पर है भी या नहीं ???....थोड़ी देर सोचने पर मुझे इसका जवाब मिल गया !!!

17 टिप्पणियाँ:

निर्मला कपिला on January 31, 2009 at 4:57 AM said...

ek naye dhang se is sunder abhivyakti ke liye sadhu vad

Vinay on January 31, 2009 at 7:10 AM said...

दिल की बात!

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } on January 31, 2009 at 7:55 AM said...

खुदा के वजूद को जब पूछता हूँ मैं
लोग काफिर कह कयामत के इंतजार को कहते है

Himanshu Pandey on January 31, 2009 at 8:44 AM said...

सुन्दर अभिव्यक्ति .

परमजीत सिहँ बाली on January 31, 2009 at 8:46 AM said...

मो को कहाँ ढूँढे रे बंदे मैं तो तेरे पास में.......

Anonymous said...

bahut achha lekh,khuda to dil mein rehta hai shayad..

aarya on January 31, 2009 at 10:24 PM said...

अनवर जी
राम-राम
आपने अपने प्रोफाइल में लिखा है की आपको पुस्तके पढ़ना पसंद नहीं है, लेकिन आपके लिखने से ऐसा लगता है की, इतनी गहराई अद्ययन से ही आ सकती है खैर जो भी हो आपकी लेखनी में कुछ बात जरुर है,
रत्नेश त्रिपाठी

aarya on January 31, 2009 at 10:24 PM said...

अनवर जी
राम-राम
आपने अपने प्रोफाइल में लिखा है की आपको पुस्तके पढ़ना पसंद नहीं है, लेकिन आपके लिखने से ऐसा लगता है की, इतनी गहराई अद्ययन से ही आ सकती है खैर जो भी हो आपकी लेखनी में कुछ बात जरुर है,
रत्नेश त्रिपाठी

aarya on January 31, 2009 at 10:24 PM said...

अनवर जी
राम-राम
आपने अपने प्रोफाइल में लिखा है की आपको पुस्तके पढ़ना पसंद नहीं है, लेकिन आपके लिखने से ऐसा लगता है की, इतनी गहराई अद्ययन से ही आ सकती है खैर जो भी हो आपकी लेखनी में कुछ बात जरुर है,
रत्नेश त्रिपाठी

Anil Pusadkar on February 1, 2009 at 1:28 AM said...

मियां चिलगोज़े ढूंढने से तो सब मिल जाता है,रब भी। रात को थक़ हार कर जब तुम घर गये तो तुम्हे एक बार नही दो बार खुदा के दर्शन हुए।अम्मी और अब्बू को बहुत ध्यान से देखना तुम्हे किसी को कहीं ढूंढने जाना नही पड़ेगा।

Anwar Qureshi on February 2, 2009 at 3:38 AM said...
This comment has been removed by the author.
daanish on February 3, 2009 at 5:34 AM said...

सच्चे और नेक इंसान से बड़ा और
कोई भगवान् हो सकता है भला ??
शायद नही .....
आपके आलेख में सादगी भी है , शाईस्त्गी भी ....
मुबारकबाद . . . . .!
---मुफलिस---

अनुज शुक्ला on February 21, 2009 at 2:16 AM said...

ग्म और खुसी के हीसब के पन्ने
हवा बीख्रा ग इ जीन्दगी के कीताब के पन्ने
सवाल मैने कीया बहुत ही उस बुत से मगर
कहा डुडु मै उ्सके जबाब के पन्ने.

Pratibha Katiyar on April 17, 2009 at 1:19 AM said...

waise khuda milna itna mushkil bhi nahin Anwar ji isi jami par baat bas itni hai ki kisme rab dikhta hai. Sundar likha hai aapne....

admin on June 4, 2009 at 12:33 AM said...

मिले, तो हमें भी बताइएगा।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Smart Indian on July 30, 2009 at 7:23 PM said...

मोको कहाँ ढूंढें रे बन्दे...(संत कबीर)

Creative Manch on January 27, 2010 at 6:05 AM said...

sundar prastuti..


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