Tuesday, January 6, 2009

चहरा ..चहरे पर ...चहरा ...???



तेज़ी से भागती हुई ज़िन्दगी में न जाने कितने चहरे देखें होंगे ... सड़क पर ...चौक ..चौराहों पर ..या किसी बाज़ार पर ...हर चहरा जैसे कुछ कह रहा हो ...कोई अपना कोई अनजाना सा ...किसी चहरे पर खुशी ...तो किसी पर शिकन ...कुछ मजबूर ..तो कुछ लाचार ...कुछ दर्द को छुपाते हुए चहरे पर मुस्कान लिए ...तो कोई सच में खुशी का अहसास करते हुए ...कितने चहरे ...कुछ याद है कुछ भूल गए ..........चहरे ...कितने ...चहरो पर चहरे ..कितने ...कभी सोचा है ???






कुदरत से हमे जो एक चहरा मिला है , उस चहरे पर हम न जाने कितने चहरों का भोझ लिए घूम रहे है ? ...यूँ तो चहरा एक ही होता है लेकिन दूसरो का उसे देखने का नज़रिया अलग अलग होता है ...हर शक्स के लिए एक नया चहरा ?...अपनी कार से ज़यादा चमचमाती अपने मित्र की कार देख उसे दूर से मुस्कुराते हुए हाथ हिलाना ...और मिलकर अपनी मित्रता का परिचय देना ....फ़िर थोड़ी ही दूर किसी ट्रेफिक में फस कर किसी ...रिक्शे ॥या ठेले ..वाले पर अपनी शालीनता का परिचय देना ?...



ऑफिस पहुँचते ही ...बहार खड़े गाड से कहना ...अबे ओये ॥इधर आ ..ये ले पैसा ..फलां चीज़ लेकर मेरे चैम्बर में आना ..और हाँ ...जल्दी आना ...समझा ना ...ऑफिस की महिला रिशेप्शननिस्ट के हेलो ..का मुस्कुराते हुए जवाब देना ..और फ़िर अपने चैम्बर की तरफ़ चले जाना.....बॉस के बुलावे पर ...उनके सामने ...सर ..सर ...सर ...मैं इसे अभी देख लेता हूँ ...दुबारा एसा नहीं होगा ?..बहार निकलते ही ...अपने कलिग से ...बहुत ही सनकी आदमी है ये ...इसे तो देख लूँगा ?...हाथ में सामान लिए खड़ा गाड..सर ...ह्म्म्म ...जा वहां रख दे ?...



हलाँकि ये तो किसी उपन्यास के बीच का हिस्सा लगता है ...लेकिन इस बात में कई हद तक सच्चाई छुपी हुई है ...हर किसी के लिए हम अपने चहरे ...चरित्र को बदलते है...हर किसी का नज़रिया हमे देखने का अलग होता है ...ना जाने हर रोज़ हम कितने चहरे बदलते है ...कुछ लोग अपनों की शक्ल में तो होते है ...लेकिन अपने कभी नहीं हो सकते ?...कभी पराया सा लगने वाला ही अपना हो जाता है ....



शायद दुसरे को देखने का हमारा ये नज़रिया ....वो सामाजिक नज़रिया हो सकता है ...जिसमे हम पद..पैसा ..या पॉवर के आधार पर तुलना करते है ?... लेकिन कहीं न कहीं हम अपने ख़ुद के वजूद को खत्म करते जा रहे है ?...ख़ुद अपने चहरे पर इतने चहरे लगाते जा रहे है ॥के ख़ुद को पहचानना भी मुश्किल होता जा रहा है ?...किसी विद्वान ने कहा है ..आप का असली चहरा वो ही है ....जिस तरह आप अपने नौकर से पेश आते है ...



4 टिप्पणियाँ:

Vinay on January 6, 2009 at 4:14 PM said...

बढ़िया लेख! लाजवाब!

---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम

Smart Indian on January 6, 2009 at 4:42 PM said...

अनवर भाई, आज के इस मुखौटों के समय में आपका यह लेख बहुत सही है.

Anonymous said...

" The all cg Citizen is Journaliest and Welcome to the Cg Citizen Journalism ! Welcome to the Cg Revolution in cg4bhadas.com Media "! You are about to join "Cg4bhadas.com " Media Interactive as a Global Cg Citizen Reporter.

Anonymous said...

" The all cg Citizen is Journaliest and Welcome to the Cg Citizen Journalism ! Welcome to the Cg Revolution in cg4bhadas.com Media "! You are about to join "Cg4bhadas.com " Media Interactive as a Global Cg Citizen Reporter.
cg4bhads.com

Advertisement

 

Copyright 2008 All Rights Reserved | Revolution church Blogger Template by techknowl | Original Wordpress theme byBrian Gardner