Saturday, November 1, 2008

मैं ख़ुदा हूँ ???



धरती पर मनुष्य की उपस्थिति के दिन से ही उसने अपने आस पास के वाता वरण को अपने अनुकूल में करने के लिए न जाने क्या क्या किया , सब कुछ अपनी सुविधा के अनुसार , और सफल भी रहा शायद इश्वर ने उन्हें वो असीम शक्ति प्रदान की जो उसे दुसरे प्राणियों से अलग करती है , मनुष्य अब शक्तिशाली है अब सिर्फ़ धरती क्या उसे आसमान को जानने की ललक है भ्रमांड की हलचल को पहचानने समझ भी है इस शक्ति का आकलन करना कठिन है !
इस दृष्टिकोण से देखें तो वास्तव में मनुष्य प्रगतिशील दिखता है लेकिन क्या आज के इस दौर में मनुष्य प्रगति की उस राह पर है जहाँ संवेदनाओं की कोई जगह नहीं है, जहाँ अंहकार सर्वोपरी है , जहाँ भावनाओं को समझने की समझ नहीं है , ये वो दौर है जिसे प्रतिस्पर्धा का दौर कहा जाता है यूं तो प्रतिस्पर्धा स्वस्थ भी होती है लेकिन ये होड़ है एक दुसरे से आगे निकलने की , एक दुसरे को नीचा दिखने की , ये वो अवसर है जहाँ इंसान खुद को सबसे ऊपर दिखने की कोशिश में है , क्या ये आज का इंसान है ?
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तो फिर ये संबंधों में दूरियों के लिए जगह क्यूँ है ? या संबंधों का बदलना दूरियों की वजह है तो फिर क्या मनुष्य अपने रिश्तों को निभाने में सक्षम नहीं है ? या उसे रिश्ते अब पुराने लगने लगे है ? ...वजह चाहे कुछ भी हो लेकिन रिश्तों में दूरियां निरंतर बढ़ रही है !

क्या मनुष्य हिंसक होता जा रहा है ? ...अगर हाँ ... तो इसकी वजह क्या है ? क्या इसकी वजह ये है के वो सर्वशक्तिमान बनना चाहता है ? या इस वजह से की वो ये न बन सका ? ॥एक मनुष्य का दुसरे मनुष्य पर हिंसक होना उसे दुसरे से शक्तिशाली होने के गोरव प्राप्त कराता है ,लेकिन जब मानवता की बात हो तो वो इस कतार के खुद को काफी दूर पता है लेकिन अपने अहम् के आगे मर चुकी सवेदनाओं को जीवित भी नहीं करना चाहता है क्यूंकि उसे आगे बने जो रहना है !
आज का मनुष्य शक्तिशाली है क्यूँ की उसका कोई कमज़ोर सामना नहीं कर सकता ? आज का मनुष्य सिर्फ अपने हितों की सोचता है चाहे वो इसके लिए उसे भी कुछ भी त्याग करना पड़े वो पीछे नहीं हटता है , राजनितिक स्वार्थ के लिए कितने बेगुनाहों की बलि दे दी जाती है , धन का लोभ मनुष्य को सब कुछ करने का निमंत्रण देता है , मनुष्य सिर्फ उस असीम शक्ति के पीछे भाग रहा है जिसे पाकर उसकी ख़ुदा बनने की चाहत पूरी हो सके ???

मनुष्य अब उस रास्ते तेज़ी से भाग रहा है जहाँ सिर्फ आगे बढ़ने की होड़ है , अपने विचारो को वो कहीं पीछे छोड़ चुका है एक ललक है उसे पाने की जो दूर से सुन्दर तो लगता है लेकिन सच में उसका कोई अस्तित्व नहीं है लेकिन इस दौड़ भाग में उसने जो पाया { घमंड , अंहकार , संवेदनहीनता , क्रूरता } आदि सब ही प्राप्त कर सका है , इस नासमझी में उसे लगने लगा है ....मैं ख़ुदा हूँ !!!

10 टिप्पणियाँ:

जितेन्द़ भगत on November 1, 2008 at 10:45 AM said...

मनुष्‍य खुदा है पर उससे जुदा है, आदतन अपने कि‍ए पर ही फि‍दा है।
(काफी दि‍नों बाद आए आप। )

सुनील मंथन शर्मा on November 1, 2008 at 11:13 AM said...

दौडें-भागें मंजिल पाने के लिए. घमंड, अंहकार के लिए नहीं.

संगीता पुरी on November 1, 2008 at 4:17 PM said...

मानवीय संवेदनाओं की रक्षा सबसे आवश्‍यक है ,उंचाई प्राप्‍त करने के लिए।

Udan Tashtari on November 1, 2008 at 6:13 PM said...

इसी नासमझी के संग न जाने कितने जिये जा रहे हैं.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर on November 1, 2008 at 7:04 PM said...

tum khuda ho main bhagat
narayan narayan

दिनेशराय द्विवेदी on November 1, 2008 at 8:41 PM said...

यह खुदा खुद-ब-खुद को नष्ट कर लेगा।

Smart Indian on November 1, 2008 at 9:40 PM said...

समझदार प्राणी की नासमझी?

Anil Pusadkar on November 2, 2008 at 1:16 AM said...

बहुत सही अनवर्। खूब लिखो ,खूब्। तुम्हारे जैसे लोगो का लिखना आज बहुत ज़रुरी है।बहुत-बहुत बधाई ।

PD on November 2, 2008 at 1:35 AM said...

यह खुदा कहीं भस्मासुर का ही कोई रूप तो नहीं??

योगेन्द्र मौदगिल on November 2, 2008 at 7:58 AM said...

सटीक एवं सार्थक लिखा है आपने
बधाई

Advertisement

 

Copyright 2008 All Rights Reserved | Revolution church Blogger Template by techknowl | Original Wordpress theme byBrian Gardner