Monday, November 17, 2008

जीवन क्या है ?

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दुःख बिना सुख ना भावे ,
दर्द बिना आराम न आवे !
जो मिल जाये बिन महनत उसका
मोल नहीं कुछ होवत है ,

जोड़ जोड़ के तिनका तिनका
ऐसा मन को भावत है !!
सागर सागर किस काम का जो
प्यास भी ना भुझा पावत है ,

बूंद बूंद मिल जाये तो
मन भर प्यास भुझावत है !!
धरती की विशाल है काया
फिर भी आकाश संमावत है ,
छोटे छोटे पर है
मेरे इसमें आकाश समाये रे !!

संबंधों की डोर है कच्ची
प्रेम प्रेम से जिले तू ,
एक बार जो जाये फिर तो
वापस नहीं वो आवत है !!

और जीवन काल बहुत है
छोटा जिले जीवन सरल सरल ,
जीते जी कोई पूछे न है !
मर के याद ना आये गा ,
बात मान ले मेरी
वरना जीवन भर पछतायेगा जीवन भर पछतायेगा !!!

Saturday, November 1, 2008

मैं ख़ुदा हूँ ???

10 टिप्पणियाँ

धरती पर मनुष्य की उपस्थिति के दिन से ही उसने अपने आस पास के वाता वरण को अपने अनुकूल में करने के लिए न जाने क्या क्या किया , सब कुछ अपनी सुविधा के अनुसार , और सफल भी रहा शायद इश्वर ने उन्हें वो असीम शक्ति प्रदान की जो उसे दुसरे प्राणियों से अलग करती है , मनुष्य अब शक्तिशाली है अब सिर्फ़ धरती क्या उसे आसमान को जानने की ललक है भ्रमांड की हलचल को पहचानने समझ भी है इस शक्ति का आकलन करना कठिन है !
इस दृष्टिकोण से देखें तो वास्तव में मनुष्य प्रगतिशील दिखता है लेकिन क्या आज के इस दौर में मनुष्य प्रगति की उस राह पर है जहाँ संवेदनाओं की कोई जगह नहीं है, जहाँ अंहकार सर्वोपरी है , जहाँ भावनाओं को समझने की समझ नहीं है , ये वो दौर है जिसे प्रतिस्पर्धा का दौर कहा जाता है यूं तो प्रतिस्पर्धा स्वस्थ भी होती है लेकिन ये होड़ है एक दुसरे से आगे निकलने की , एक दुसरे को नीचा दिखने की , ये वो अवसर है जहाँ इंसान खुद को सबसे ऊपर दिखने की कोशिश में है , क्या ये आज का इंसान है ?
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तो फिर ये संबंधों में दूरियों के लिए जगह क्यूँ है ? या संबंधों का बदलना दूरियों की वजह है तो फिर क्या मनुष्य अपने रिश्तों को निभाने में सक्षम नहीं है ? या उसे रिश्ते अब पुराने लगने लगे है ? ...वजह चाहे कुछ भी हो लेकिन रिश्तों में दूरियां निरंतर बढ़ रही है !

क्या मनुष्य हिंसक होता जा रहा है ? ...अगर हाँ ... तो इसकी वजह क्या है ? क्या इसकी वजह ये है के वो सर्वशक्तिमान बनना चाहता है ? या इस वजह से की वो ये न बन सका ? ॥एक मनुष्य का दुसरे मनुष्य पर हिंसक होना उसे दुसरे से शक्तिशाली होने के गोरव प्राप्त कराता है ,लेकिन जब मानवता की बात हो तो वो इस कतार के खुद को काफी दूर पता है लेकिन अपने अहम् के आगे मर चुकी सवेदनाओं को जीवित भी नहीं करना चाहता है क्यूंकि उसे आगे बने जो रहना है !
आज का मनुष्य शक्तिशाली है क्यूँ की उसका कोई कमज़ोर सामना नहीं कर सकता ? आज का मनुष्य सिर्फ अपने हितों की सोचता है चाहे वो इसके लिए उसे भी कुछ भी त्याग करना पड़े वो पीछे नहीं हटता है , राजनितिक स्वार्थ के लिए कितने बेगुनाहों की बलि दे दी जाती है , धन का लोभ मनुष्य को सब कुछ करने का निमंत्रण देता है , मनुष्य सिर्फ उस असीम शक्ति के पीछे भाग रहा है जिसे पाकर उसकी ख़ुदा बनने की चाहत पूरी हो सके ???

मनुष्य अब उस रास्ते तेज़ी से भाग रहा है जहाँ सिर्फ आगे बढ़ने की होड़ है , अपने विचारो को वो कहीं पीछे छोड़ चुका है एक ललक है उसे पाने की जो दूर से सुन्दर तो लगता है लेकिन सच में उसका कोई अस्तित्व नहीं है लेकिन इस दौड़ भाग में उसने जो पाया { घमंड , अंहकार , संवेदनहीनता , क्रूरता } आदि सब ही प्राप्त कर सका है , इस नासमझी में उसे लगने लगा है ....मैं ख़ुदा हूँ !!!

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