Saturday, July 26, 2008

सच में बड़ा सुकून पहुचाती हो तुम ...


जब जब तन्हाइयों में तेरा साथ होता है ,
सच में बड़ा सुकून पहुचाती हो तुम !
कांपते हाथों को तेरा सहारा मिल जाता है ,
लग के होटों से सारी दूरियां मिटाती हो तुम ,
सच में बड़ा सुकून पहुचाती हो तुम !!
वो कांच के टुकड़ों की चुभन ,
और प्यार से गर्दन को सहलाना ,
धीरे धीरे मेरी सासों में समां जाना ,
ले लेना मुझे अपने आगोश में ,
अपने होने का मुझे अहसास कराना ,
हर वक्त याद आती हो तुम ,
सच में बड़ा सुकून पहुचाती हो तुम !!
कभी बन के धुवां आसमान में छाजाती हो तुम ,
ना जाने कितने हासीन चहरे बनाती हो तुम ,
मुझे ले करके किसी हसी दुनिया में ,
हर खुशियों का एहसास कराती हो तुम ,
आखरी दम तक देती हो साथ मेरा ,
मेरी खुशियों के वास्ते जल जाती हो तुम ,
सच में बड़ा सुकून पहुचाती हो तुम !!
{ वैधानिक चेतावनी - सिगरेट पीना स्वास्थ के लिए हानि कारक है }

4 टिप्पणियाँ:

मोहन वशिष्‍ठ on July 26, 2008 at 7:29 AM said...

वाह अनवर कुरेशी जी बहुत अच्‍छी कविता लिखी आपने
ले लेना मुझे अपने आगोश में ,
अपने होने का मुझे अहसास कराना
क्‍या कहना
और जो अंत में आपने सिगरेट के गुण बताए वो भी अच्‍छा लगा बधाई हो

मिथिलेश श्रीवास्तव on July 26, 2008 at 7:37 AM said...

खूब लिखा भई!

समयचक्र on July 26, 2008 at 7:37 AM said...

बहुत अच्‍छी कविता. बधाई,

राज भाटिय़ा on July 27, 2008 at 7:56 AM said...

अनवर जी बहुत ही खुब सुरत कविता कही हे आप ने, धन्यवाद

 

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