Saturday, July 26, 2008

अब के गिरो तो ज़रा संभल के गिरियेगा !



चलते चलते अगर आप के कभी पाँव फिसल जाये इससे पहले कोई देखे आप खुद ही संभल जाएँ या अगर ना संभल सके तो समाज के उस चहरे का मज़ाक बनने के लिए तैयार रहे जो आप को कही दूर टक टकी लगाये देख रहे है , जिसे इस बात में मज़ा आ रहा है की वह इंसान सड़क पर फिसल के गिरा हुआ है , बड़ी अजीब सी विडम्बना है लेकिन इस मानसिकता के लोग सड़क पर गिरे इंसान को क्या इतना गिरा हुआ इंसान समझते है की समूह में उसपर हँसा जाता है ?
बड़े ही शर्म की बात है...लेकिन क्या सच में हमे इस तरह के संस्कार मिले है की किसी के गिरने पर हँसा जाये ? तरस आता है मुझे इस तरह के लोगों पर , हसने के और भी बहाने हो सकते है लेकिन किसी की बेबसी पर हँसना कितना जायज़ है ?
बहुत कम ही ऐसे लोग है जो किसी गिरते हुए को सहारा दे , बहुत की कम ऐसे है जो किसी की ज़रूरत के वक्त काम आयें , चलिए किसी गिरते हुए को सहारा ना दे , किसी की ज़रूरत के वक्त काम भी ना आयें लेकिन कुछ तो इंसान होने का परिचय दें , कभी तो उस सड़क पर पड़े पत्थर को ठोकर मारीये जो किसी दुसरे की ठोकर में आयें , किसी को रास्ता ना दिखाएँ लेकिन उसके रास्ते का अड़ंगा ना बने , कैसे इस तरह के लोगों की सोच को बदली जाये के किसी पर हसने से ज़ादा अच्छा ये है के अपना हाथ बढाके उसका सहारा बना जाये , मुझे नहीं मालुम आप ही बताइए ? ना बताना चाहिए तो ज़रा संभल के चलियेगा सड़क पे कई चहरे आप पर टक टाकी लगाये बैठे है ?

1 टिप्पणियाँ:

राज भाटिय़ा on July 26, 2008 at 5:39 AM said...

कुरेशी भाई, बहुत कम लोग हे जो किसी के गिरने पर हंसते होगे, हा साहारा देने वाले बहुत मिलते हे, हां गिरने गिरने मे भी फ़र्क हे, अब आप किसी हसीना पे गिरते हे, किसी के दिल से, किसी की नजरो से, सडक से, बस से, छत से, जमीर से, या फ़िर गरीब जनता की नजरो से, सच कहा हे गिरो मगर संभल के.
धन्यवाद, एक अच्छी पोस्ट के लिये

 

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